हरिद्वार ऋषिकेश ,mahadev temple

 इस लेख में हरिद्वार का पूरा इतिहास , माहात्म्य तथा तीर्थों की पूर्ण जानकारी का उलेख किया गया हे


हरीद्वार

हरीद्वार भारत के समस्त तीर्थों में से एक  ऐसा आकर्षण हे  जहां के मनोरम द्र्श्य मानव  दिल को परम आनन्द का अनुभव करते हे यहाँ माँ गंगा की कल कल करती शांत धारा मनुष्य के हर दुःख दर्द ओर  तकलीफ़ को शांत करती हे
ओर एका गर्ता प्रदान करने में पूर्णत, सफल हे

तीर्थ एक नाम अनेक,

इस  स्थान के बारे में अनेक  पोरानिक कथाये होने के कारण हरिद्वार की यदि कई नामों से याद किया जाता हे तो इसमें कोई आशर्य की बात नहीं हे

भागीरथी,

  भागीरथी श्री गंगा जी पर्वत से कल कल  नाद करती हुई  सर्व प्रथम समतल भूमि में यही से प्रवाहित होती हे, इसी कारण यहाँ का दूजा नाम "गंगा द्वारा पड़ा । स्कन्द पुराण, में इस स्थान को मायापुरी , के नाम से सम्बोधित किया  हे  जोकी आज  हरीद्वार में "कनखल" के नाम से पुकारा जाता हे इस स्थान को लोग हरिद्वार के नाम से भी पुकारने लगे 
क्यूकी कुछ लोग "महादेव" को हर-हर   के नाम से पुकारते हे  तथा "शंकर" जी के केलाश जाने का प्रथम द्वार यही था
श्री केदारनाथ, कीं यात्रा को जाने के लिए भी यही मार्ग हे तथा पांडवों ने भी मोक्ष प्राप्ति के लिए हिमालय की ओर प्र्स्थान यही से किया था  इस लिए से "मोक्षद्वार" भी कहा जाता हे 
आजकल इसे 'हरिद्वार' नाम से सम्बोधित करते हे इसका कारण यह हे कि उतराखंड, में सीथित ,बद्री, नारायण,  अर्थात् भगवान विष्णु, के अनुपम स्थान  पर जाने का भी यही मार्ग हे भगवान विष्णु को हरी, शब्द से पुकारा जाता हे इसी कारण इस स्थान को हरिद्वार  अर्थात् भगवान विष्णु का द्वार भी कहा जाता हे मानव की मृत्यु के उपरांनत उसकी अस्थियाँ हरीद्वार में अवश्य प्रवाहित की जाति हे इससे पितरों, को मोक्ष प्राप्ति होती हे इसी करण इसे मोक्ष धाम, भी कहा भी कहा जाता हे 

प्राचीन काल में यहाँ राजा श्वेत ने ब्रह्मा जी से तप करके  माँगा था कि आप विष्णु तथा महेश जी तीनो इस  जगह में वास करे इस कारण इस  जगह को ब्रह्मापूरी, भी कहा जाता हे  वास्तविकता यह हे कि विभिन्न विधानो ने  अपनी बुधीमता  के अनुसार इस जगह का नामकरण किया हे प्राचीन काल से ही यह स्थान देवताओं का निवास स्थान रहा हे  कारण संतो, महत्माओं  का इस स्थान की ओर आकर्षण होगा  स्वभाविक हे शुभ- निशुम्भ असुरों के साथ माँ शक्ति ने मानसा देवी पार्वत पर युधद
किया। चामुंडा, ने इसी पर्वत में अपने आप को छिपाया था,  इसी स्थान पर सप्तश्रषि ने तप किया जिसके करण माँ गंगा सप्तश्रषि को प्रसन करती हुई सात धराओ में बही
भगवानराम, के  भाई इसी स्थान से होकर ऋषिकेश गये भरत मंदिर यह याद आज भी ताज़ा कर देता हे किसी ने इस जगह के बारे में ठीक कहा हे कि  धरती पर कही स्वर्ग हे तो यही हे  हरीद्वार 🙏🏻😁












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